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Managing Rheumatoid Arthritis With Homoeopathy

Rheumatoid Arthritis — a chronic autoimmune disease which causes swelling and pain in the joints of the wrists, hands, and feet. Also, when joint linings are attacked by the immune system, it leads to stiffness, specifically getting worse in the mornings. This can further lead to bone or cartilage damage as well. Though Rheumatoid Arthritis can not be cured, it can be controlled through homoeopathic medicines and various lifestyle changes. 

Homoeopathy in relation to Rheumatoid Arthritis

The treatment of Rheumatoid Arthritis in relation to Homoeopathy encompasses making use of the natural substances, which are highly diluted, in order to deal with the symptoms, thereby improving the overall well-being. Though in comparison to conventional medicine, the efficacy of the homoeopathic treatment for Rheumatoid Arthritis is indefinite and limited, as per the scientific evidence. 

Homoeopathy is not a substitute for standard medical care. It is recommended to always consult a homoeopathic healthcare practitioner before you initiate any new treatment for this disease. Homoeopathy can prevent further severe damage. The remedies of homoeopathy are tailored to the needs of the individuals and their precise condition of the disease. The homoeopathic healthcare practitioner chooses a remedy based on the indicative symptoms and emotional state of the individual. 

Conventional homoeopathic remedies for Rheumatoid Arthritis

Specialised remedies are generally recommended, which are based on the kind of pain and its attendant symptoms — 

  • Arnica Montana — It can be used if you have a bruised and inflamed sensation in your joints, and specifically if your pain becomes worse with touching or after some past injury. 
  • Rhus Toxicodendron — This is used for the pain and stiffness of the joints, which usually aggravates at the initiation of motion but later on, improves with persistent slow movement. The symptoms of the disease worsen with the change of weather, from hot to cold and damp weather. 
  • Ledum Palustre — This is generally suggested for arthritis that begins in the lower joints and then migrates upward. The joints that are affected can be inflamed and swollen. The individual can feel better after cold applications. 
  • Bryonia Alba — It is advised for stitching and sharp pains that usually aggravate even by the slightest movement. Therefore, the patients generally prefer to stay perfectly motionless. 
  • Pulsatilla — This is advised for those pains that travel inadvertently from one joint to another.  The symptoms worsen as the warmth increases and get better after staying in the open air. 

Things you must consider

It is crucial to consult a homoeopathic doctor before taking any medicine. As Rheumatoid Arthritis is an autoimmune disease, it needs to be managed effectively. If not controlled, it can lead to joint damage, which is irreversible. It is essential to help the homoeopathic doctor with the diagnosis by telling the precise symptoms. Also, you must discuss with the doctor about the complementary treatments as well. 

Synergistic approaches 

The people suffering from Rheumatoid Arthritis generally find relief by combining various treatments. Lifestyle adjustments can prove to be beneficial in the management of the symptoms – 

  • Exercise — Yoga, tai chi and various exercises involving gentle movement therapies may help in improving flexibility, which can further improve mood and overall quality of life. 
  • Diet — The diet which works best for this disease is an anti-inflammatory diet, such as a vegan or Mediterranean diet. This can help in diminishing the inflammation. 
  • Variety of supplements — For easing out pain as well as stiffness, fish oil supplements can be a good option. It is crucial to check with the medical practitioner before including these supplements in your daily routine. 

Conclusion

Homoeopathy treats the overall health of the individual and not just the disease. Hence, it is beneficial because it provides a unique treatment which is tailored to the needs of the individual and the disease. The treatment is customised, addressing the symptoms which are both physical and emotional. These remedies specifically stimulate the healing of the body through the body’s own healing powers. Dr Sonal’s Homoeopathic Clinic provides unparalleled treatments for various diseases, including Rheumatoid Arthritis. Must visit the clinic and consult Dr Sonal Mehta, who offers patient-centred care with empathy, as the foundation of this clinic is built on communication and empathy.

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आखिर क्या हो सकते हैं फैटी लिवर के शुरुआती लक्षण? इसके होम्योपैथिक उपचारों के बारे में जाने डॉक्टर से

व्यस्त जीवनशैली के कारण लोग आपके लिए बिल्किल भी समय नहीं निकाल पाते हैं और इसकी वजह से उनको कई तरह की समस्यायों का सामना करना पड़ता है। दरअसल, खराब जीवनशैली, अनहेल्दी डाइट और नियमित व्यायाम की कमी के कारण लोगों में कई ऐसी समस्याएं हैं, जो आज के समय में काफी ज्यादा आम देखने को मिलती है, दरअसल इसके साथ ही लोगों में फैटी लिवर की समस्या काफी ज्यादा आम देखी जाती है। दरअसल, आपकी जानकारी के लिए आपको बता दें, कि इस तरह की समस्या तब विकसित होती है, जब लिवर की कोशिकाओं में अतिरिक्त चर्बी जमा हो जाती है और जिसकी वजह से लिवर के सही तरीके से काम करने की क्षमता में काफी ज्यादा रुकावट आने लग जाती है। दरअसल, इसमें चिंता करने वाली बात यह होती है, कि बहुत सारे लोग ऐसे होते हैं, जो फैटी लिवर के शुरुआती चरणों में, इसके लक्षणों की पहचान नहीं कर पाते हैं। जिसकी वजह से इस तरह की स्थिति बिना किसी लक्षण के अपने आप बढ़ती रहती है। 

आपको बता दें, कि इस समस्या के शुरुआती लक्षणों की पहचान करना बहुत ही ज्यादा जरूरी होता है, ताकि समय पर इलाज से लिवर में सूजन, फाइब्रोसिस, सिरोसिस या फिर लिवर फेलियर जैसी गंभीर जटिलताओं को ठीक किया जा सके। अब सवाल यह उठता है, कि आखिर फैटी लिवर के शुरुआती लक्षण क्या हो सकते हैं? तो फैटी लिवर के शुरुआती लक्षणों में थकान और कमजोरी, ऊपरी दाहिने पेट में बेचैनी, बिना किसी वजह से वजन बढ़ना, मतली और भूख न लगना, कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली और गहरे रंग का मूत्र या फिर हल्के रंग का मल आना आदि शामिल हो सकते हैं। आइये इस लेख के माध्यम से इसके बारे में इस के डॉक्टर से विस्तार से जानकारी प्राप्त करते हैं। 

फैटी लिवर के लक्षण शुरुआती लक्षण

असल में, फैटी लिवर की समस्या धीरे-धीरे बढ़ती है, और इस समस्या की शुरुआत में लोगों को कोई लक्षण नहीं दिखते। हालांकि, हम आपको बता दें कि फैटी लिवर के लक्षण हल्के हो सकते हैं, जो आमतौर पर बताते हैं कि आपके लिवर पर बहुत ज्यादा दबाव है। समस्या की पहचान करने और सही इलाज करने के लिए फैटी लिवर के इन शुरुआती लक्षणों को पहचानना बहुत जरूरी है:

  1. थकान और कमजोरी होने लगना। 
  2. पेट के ऊपरी दाहिने हिस्से में तकलीफ होना। 
  3. बिना किसी वजह के वजन बढ़ना।
  4. मतली और भूख लगना।
  5. कमजोर इम्यून सिस्टम होना। 
  6. गहरे रंग का पेशाब आना। 
  7. स्किन और आंखों के रंग में बदलाव होना। 
  8. ध्यान लगाने में मुश्किल और दिमाग में धुंधलापन आना। 
  9. पेट या फिर पैरों में सूजन होना। 
  10. आंतों से जुड़ी हल्की परेशानी होना। 

फैटी लिवर के लिए होम्योपैथी उपचार

दरअसल, फैटी लिवर के लिए होम्योपैथिक इलाज लिवर की सेहत को बेहतर बनाने और फैटी लिवर की बीमारी को नियंत्रित करने का एक प्राकृतिक तरीका माना जाता है। फैटी लिवर के लिए होम्योपैथी दवा में शामिल हो सकते हैं, जैसे कि 

  1. चेलिडोनियम माजस

होम्योपैथी उपचार का यह तरीका लिवर के कामों को बेहतर बनाने में सहायता प्रदान करता है और साथ में, पित्त के प्रवाह को उत्तेजित करता है। इसके अलावा, यह मरीज के पेट के ऊपरी दाहिने भाग में होने वाली दिक्कत और थकान से काफी ज्यादा राहत प्रदान करता है। 

  1. कार्डुअस मारियानस (दूध थीस्ल)

उपचार का यह तरीका लिवर के लिए काफी ज्यादा फायदेमंद होता होता है, क्योंकि यह लीवर को जहरीले पदार्थों से छुटकारा दिलवाने और साथ में लिवर की रक्षा करने में काफी ज्यादा सहायता प्रदान करते हैं। 

  1. नक्स वोमिका 

आपको बता दें, कि यह मरीज के डाइजेशन और मेटाबॉलिज्म को बेहतर बनाने का काम करता है। इसके साथ ही यह काफी ज्यादा शराब पीने, खराब आहार का सेवन करने और तनाव के कारण होने वाले फैटी लिवर के लिए काफी ज्यादा प्रभावी होता है। 

निष्कर्ष

फैटी लिवर के शुरुआती लक्षणों में थकान, पेट खराब होना, जी मिचलाना या फिर वजन में बदलाव शामिल होते हैं। सूजन, फाइब्रोसिस या फिर सिरोसिस के जोखिम को कम करने के लिए फैटी लिवर के इन शुरुआती लक्षणों की पहचान करना महत्वपूर्ण होता है। इसके इलाज में होम्योपैथी उपचार काफी ज्यादा सहायता करते हैं। अगर आपको भी इसके बारे में ज्यादा जानकारी या फिर अगर आपको भी फैटी लिवर की समस्या है और आप इसका समाधान चाहते हैं, तो आप आज ही डॉ. सोनल होम्योपैथिक क्लिनिक में जाकर इसके विशेषज्ञों से इसके बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

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होम्योपैथिक दवा लेने से पहले जान लें ये जरूरी नियम, वरना नहीं मिलेगा दवा का असली फायदा

दुनिया भर में कई ऐसे लोग हैं, जो कई तरह की बीमारियों का सामना कर रहे हैं और इन विभिन्न प्रकार की समस्याओं के लिए लोग द्वारा होम्योपैथिक उपचार को काफी ज्यादा असरदार माना जाता है। आपको बता दें, कि कई लोग ऐसे भी हैं, जिनका ऐसा मानना है, कि होम्योपैथिक दवाओं का किस भी तरह का कोई साइड इफेक्ट नहीं होता है। आम तौर पर, होम्योपैथिक दवाओं को किसी भी तरह की गंभीर समस्याओं को जड़ से खत्म करने के लिए भी जाना जाता है। आपको बता दें, कि एलोपैथिक दवाओं के लंबे समय में कुछ साइड इफ़ेक्ट होते हैं, इसलिए ज्यादातर लोग इसकी बजाए होम्योपैथिक दवाओं पर काफी ज्यादा भरोसा करते हैं। 

हालाँकि, आम तौर पर आपको होम्योपैथिक इलाज का असर दिखाई देने में थोड़ा वक्त लग सकता है, पर इसका असर काफी ज्यादा प्रभावशाली होता है। बता दें, कि इसने कई लोगों को कई तरह के फायदे प्रदान किये हैं। पर होम्योपैथी इलाज के दौरान, आपको कई रह की सावधानियों को ध्यान में रखना बहुत ही ज्यादा जरूरी होता है। आम तौर पर, अगर इस दौरान आप इन महत्वपूर्ण सावधानियों का ध्यान नहीं रखते हैं, या फिर भूल जाते हैं, तो यह आपके लिए काफी ज्यादा नुकसानदायक हो सकता है। इसके साथ ही इसके वजह से आप पर दवा का असर भी पुरे तरीके से नहीं हो पाता है। इसकी वहज से आपकी बीमारी को जड़ से खत्म होने के लिए काफी समय लग सकता है, या फिर सही तरीके से सावधानी न रखने के कारण समस्या का समाधान भी नहीं हो सकता है। इस वजह से ही आपको होम्योपैथी दवाओं का सेवन करने के दौरान कुछ नियमों को ध्यान में रखना बहुत ही ज्यादा जरूरी होता है। तो आइये इस लेख के माध्यम से इसके डॉक्टर से इसके बारे में विस्तार से जानकारी प्राप्त करते हैं। 

होम्योपैथिक दवाइयों के सेवन में बरतें ये सावधानियां

  1. दवाओं को सावधानी से रखें

आपको बता दें कि हमेशा होम्योपैथिक दवाओं को सावधानी के साथ रखना चाहिए, जैसे कि होम्योपैथिक दवाइयों को ज्यादा धूप और खुशबू वाली जगहों न रखें, क्योंकि इसके कारण यह दवाइयां खराब हो सकती हैं और तेज बदबू के कारण यह आपको नुकसान भी पहुंचा सकती हैं। इसलिए इन दवाइयों को हमेशा सामान्य तापमान में ही रखें। 

  1. इन चीजों के सेवन से परहेज करें 

आम तौर पर, होम्योपैथिक दवाओं को लेते वक्त, कच्चे प्याज, लहसुन और कॉफी जैसे पेय पदार्थों का सेवन करने से अपने आप का बचाव करें। इससे दवाओं का असर बिल्कुल भी नहीं होता है। इसके साथ ही आपको पान-गुटखा और स्मोकिंग आदि से भी अपना बचाव करना चाहिए। 

  1. कांच के गिलास में खाएं दवाएं 

बता दें, कि कभी भी होम्योपैथिक दवाओं का सेवन मेटल के गिलास में नहीं करना चाहिए, क्योंकि इसकी वजह से दवा और गिलास के बीच में, रिएक्शन हो सकता है और इस रिएक्शन की वह से आपकी सेहत को गंभीर नुकसान हो सकता है। दरअसल, इन होम्योपैथिक दवाओं का सेवन हमेशा कांच के गिलास में ही करना चाहिए।

  1. दवाओं को हाथों से न छुएं

अक्सर यह देखने को मिलता है, कि बहुत सारे लोग होम्योपैथिक दवाओं को अपने हाथों में लेकर ही खाते हैं। आम तौर पर, अगर आप भी इन दवाओं को अपने हाथों में लेकर ही खाते हैं, तो यह आपको कोई ख़ास फायदा नहीं प्रदान करती है। इसके साथ ही दवाओं का सेवन इस तरीके से करने से आपकी बीमारी पर किसी भी तरह का कोई असर नहीं होता है। आपको बता दें कि इस तरह की दवाओं को हमेशा कांच के बर्तन में लेकर ही खानी चाहिए। इससे आपको काफी फायदा हो सकता है। 

निष्कर्ष

विभिन्न प्रकार की समस्याओं के लिए होम्योपैथिक उपचार को काफी ज्यादा असरदार माना जाता है। होम्योपैथिक दवाओं को किसी भी तरह की गंभीर समस्याओं को जड़ से खत्म करने के लिए भी जाना जाता है। होम्योपैथिक दवाओं का सेवन करते वक्त आपको कई सावधानियों को ध्यान में रखना बहुत ही ज्यादा जरूरी होता है, जैसे कि इन होम्योपैथिक दवाओं को हमेशा कांच के गिलास में खाएं, दवाओं को हाथों से न छुएं, होम्योपैथिक दवाओं को लेते वक्त, कच्चे प्याज, लहसुन और कॉफी जैसे पेय पदार्थों का सेवन आदि न करें। इसके बारे में अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए या फिर अगर आप अपनी किसी भी तरह की समस्या के लिए होम्योपैथिक उपचार करवाना चाहते हैं, तो आप आज ही डॉ. सोनल होम्योपैथिक क्लिनिक में जाकर अपनी अपॉइंटमेंट को बुक करवा सकते हैं और इसके बारे में इसके विशेषज्ञों से जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

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जानें ऐसे 4 होम्योपैथिक उपचार के बारे में, जो आपकी डायबिटीज को करते हैं कंट्रोल

आज के समय में, डायबिटीज जैसी समस्या लोगों में काफी ज्यादा आम हो गयी है। मधुमेह या फिर डायबिटीज एक गंभीर बीमारी है, जिसका कोई सटीक इलाज नहीं है। इस बीमारी को सिर्फ दवाओं, हेल्दी डाइट और एक्सरसाइज के जरिये कंट्रोल किया जा सकता है। इस तरह की बीमारी में, लोगों के शरीर में शुगर की मात्रा काफी ज्यादा बढ़ने लग जाती है, और इस तरह की स्थिति को कंट्रोल करने वाला हार्मोन (इंसुलिन) की पैदावार कम होने लगती है। आम तौर पर, डायबिटीज जैसी समस्या से पीड़ित मरीजों को लगातार भूख लगना, थकान, काफी ज्यादा प्यास लगना, अत्यधिक पेशाब, मुंह का सूखना, घाव का ठीक न होना और लगातार धुंधला दिखाई देना जैसे लक्षण नज़र आ सकते हैं। आपको बता दें, कि अगर समय पर ब्लड शुगर जैसी समस्या को कंट्रोल नहीं किया जाता है, तो इसके कारण शरीर के अन्य अंगों को भी गंभीर नुकसान पहुंचता है। इसलिए मधुमेह या फिर डायबिटीज जैसी गंभीर बीमारी को कभी भी नज़रअंदाज नहीं करना चाहिए। इसके लक्षण नज़र आते ही तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए।

इसके अलावा इस तरह की समस्या के लक्षणों को कम करने के लिए कई अंग्रेजी दवाएं उपलब्ध है। इसके साथ ही, कुछ लोगों का मानना ​​है कि होम्योपैथी भी मधुमेह जैसी गंभीर बीमारी को नियंत्रित करने में मदद कर सकती है। तो आइये इस लेख के माध्यम से इसके डॉक्टर से इसके बारे में विस्तार से जानकारी प्राप्त करते हैं, कि कौन से होम्योपैथिक उपचार मधुमेह को नियंत्रित करने की क्षमता रखते हैं?

डायबिटीज और होम्योपैथी

दरअसल, होम्योपैथी एक वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति है, जिसका इतिहास 200 साल से भी पुराना है। आमतौर पर, इसे होम्योपैथिक दवा के नाम से भी जाना जाता है। असल में, इसका इस्तेमाल कई मरीजों के इलाज के लिए किया जाता है। आपको बता दें, कि होम्योपैथी इस बात को काफी ज्यादा बढ़ावा देती है, कि किसी भी बीमारी के लक्षणों का इलाज प्राकृतिक पदार्थों से किया जा सकता है। ऐसे में, आपको यह ध्यान रखना चाहिए, कि अगर आप मधुमेह के इलाज के लिए होम्योपैथी का इस्तेमाल करना चाहते हैं, तो इस उपचार को प्राप्त करने से पहले अपने डॉक्टर से सलाह ज़रूर लें।

डायबिटीज के लक्षणों के लिए होम्योपैथिक उपचार

आमतौर पर, होम्योपैथिक उपचार मिनरल्स, पौधों, या फिर जानवरों से प्राप्त किये जाते हैं और इन सभी को प्राकृतिक स्रोत माना जाता है। डायबिटीज के लिए होम्योपैथिक उपचार इस प्रकार हैं: 

  1. काला आलूबुखारा

ऐसा माना जाता है, कि काला आलूबुखारा में, मधुमेह के लक्षणों जैसे अत्यधिक प्यास, कमजोरी, त्वचा के छाले और अत्यधिक पेशाब का इलाज करने की क्षमता होती है।

  1. कोनियम हेमलॉक

हेमलॉक एक जहरीले पौधे की तरह होता है, जिसके रस का इस्तेमाल कई दवाइयाँ बनाने में किया जाता है। दरअसल, कोनियम हेमलॉक के इस्तेमाल से, डायबिटिक न्यूरोपैथी, या नर्व डैमेज जैसी समस्याओं का इलाज करने में मदद प्राप्त होती है। 

  1. प्लंबम (लेड)

दरअसल, लेड एक धातु की तरह होता है, जिसका इस्तेमाल कई तरह की दवाओं को बनाने में किया जाता है। यह हाथ और पैरों में सुन्नता, नसों में दर्द और टिनिटस जैसे डायबिटीज के लक्षणों के इलाज में सहायता करता है। 

  1. मैरीगोल्ड

दरअसल, फूल का यह पौधा सिर्फ घर की सुंदरता को ही नहीं बढ़ाता है, बल्कि इस पौधे का इस्तेमाल, कई तरह की दवाइओं को बनाने में भी किया जाता है। आम तौर पर, ऐसा माना जाता है, कि यह पौधा डायबिटीज के लक्षण जैसे कि अल्सर के इलाज में भी काफी ज्यादा मदद कर सकता है।

निष्कर्ष

मधुमेह या फिर डायबिटीज एक गंभीर बीमारी है, जिसका कोई सटीक इलाज नहीं है। इस बीमारी को सिर्फ दवाओं, हेल्दी डाइट और एक्सरसाइज के जरिये कंट्रोल किया जा सकता है। डायबिटीज से पीड़ित मरीजों को लगातार भूख लगना, अत्यधिक पेशाब, मुंह का सूखना, घाव का ठीक न होना और लगातार धुंधला दिखाई देना जैसे लक्षण नज़र आ सकते हैं। डायबिटीज के लक्षणों के लिए काला आलूबुखारा, कोनियम हेमलॉक, प्लंबम (लेड) और मैरीगोल्ड जैसे होम्योपैथिक उपचार काफी ज्यादा फायदेमंद होते हैं। अगर समय पर ब्लड शुगर जैसी समस्या को कंट्रोल नहीं किया जाता है, तो इसके कारण शरीर के अन्य अंगों को भी गंभीर नुकसान पहुंचता है। इसलिए इस समस्या के लक्षण नज़र आते ही तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। इसके साथ ही अगर आप मधुमेह के इलाज के लिए होम्योपैथी का इस्तेमाल करना चाहते हैं, तो इस उपचार को प्राप्त करने से पहले अपने डॉक्टर से सलाह ज़रूर लें। अगर आपको भी इसके बारे में ज्यादा जानकारी प्राप्त करनी है, या फिर आपको भी डायबिटीज जैसी कोई समस्या है और आप इसका इलाज करवाना चाहते हैं, तो आप आज ही डॉ. सोनल हीलिंग विथ होम्योपैथी क्लिनिक में जाकर अपनी अपॉइंटमेंट को बुक करवा सकते हैं और इसके बारे में इस के डॉक्टर से जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

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5 Major Causes of Developing Eczema

Developing Eczema is essentially a harrowing experience. Suffering from an Eczema flareup can effectively put your life on hold in an essential manner. Therefore, it is vital to make sure that you are able to seek treatment for these skin conditions as soon as possible. With the help of experts at Dr Sonal’s Healing with Homoeopathy Clinic, you can make sure to not only address this issue at your first consultation, but you can also make sure to enhance and explore the possibility of treatment options. There are times when allopathic medication fails to provide relief – this is where homoeopathic medicines can shine in an essential manner. 

Once one is diagnosed with suffering from Eczema, one of the first questions one often asks themselves is how this could happen. In the uncertainty of a life-altering diagnosis, one usually strives to find concrete reasons for one’s suffering. In this blog, we aim to detail the reasons why someone might suffer from Eczema. By being aware of this knowledge, you can make certain that you are able to thoroughly and effectively enhance and explore the possibility of understanding and seeking the proper treatment in an essential manner.

What are Some of the Major Causes of Developing Eczema?

There are several reasons why one can develop the trouble of Eczema, some of which are discussed below: 

Genetics 

Eczema can easily be triggered by a person’s genetics. There are several people who are genetically predisposed to develop eczema in an essential and effective manner. Therefore, if someone in your family already has eczema, there is a high chance that you might also suffer from the same in a thorough and effective manner. Genetic mutations can also cause the development of a defective skin barrier, which can impact a person’s ability to fight against irritants and allergens. 

Environmental Triggers 

Eczema can also be thoroughly triggered by certain environmental factors. These factors include everyday items such as rough soaps, detergents, as well as specific fabrics such as wool in an essential manner. Allergens such as pollen might also trigger a flare-up in a critical manner. 

Immune System 

People who are affected with eczema also have a hyperactive immune system. Therefore, this might lead to the issues of inflammation, itching and several other concerning symptoms. 

Dietary Concerns 

For certain people, specific food items can thoroughly and effectively trigger the presence of eczema. Most commonly, eczema is triggered by dairy products, eggs, nuts, and gluten in an essential manner. However, this can vary from person to person. 

Stress 

Emotional and physical stress can also impact the skin’s protective barrier. Therefore, one might suffer from the issue of eczema. An enhanced amount of cortisol in your body can also trigger a flare-up in an essential and effective manner. 

Conclusion 

Developing Eczema can thoroughly prove to be a life-altering diagnosis. One needs to make sure that they are able to not only consult skin specialists for an official diagnosis, but you can also ensure that they can enhance and explore the possibility of treatment in an effective manner. Easily provide the possibility of addressing your issues as well as making sure that you are able to find relief with the help of homoeopathic solutions. At Dr Sonal’s Healing with Homoeopathy Clinic, you do not have to worry about anything! Our team not only ensures that you can get an official diagnosis, but you can also make sure that you are able to undergo effective treatment in an essential manner.

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डैंड्रफ होने के मुख्य लक्षण, कारण और कैसे पाएं निदान ?

डैंड्रफ एक सामान्य विकार है, जिसकी वजह से सिर की त्वचा पपड़ीदार बनने लग जाती है | रुसी की वजह से सिर में काफी खुजली होती है और बाल झड़ने की समस्या भी उत्पन्न हो जाती है | यह समस्या तब उत्पन्न होती है, जब सिर के त्वचा की कोशिकाओं काफी बढ़ जाती है | स्कैल्प यानी सिर की त्वचा में सिबेशियस ग्रंथि मौजूद होती है, जो स्कैल्प को नरम और मुलायम रखने के लिए सीबम का स्त्राव करती है | सीबम के अधिक मात्रा में उत्पादन होने के कारण यह त्वचा को तैलीय कर देते है, जिसके चलते स्कैल्प पर खुजली होने लग जाती है | सिर की त्वचा में आये इस तरह के बदलाव से कई तरह के त्वचा से जुड़े रोग होने का खतरा बढ़ जाता है, जिनमें से एक है डैंड्रफ | 

 

आमतौर पर यौवनावस्था के बाद ही बहुत से लोगों को डैंड्रफ की समस्या होने लग जाता है और जिसके मामले सबसे अधिक पुरुषों में पाए जाते है | सिबोरिया होने के लक्षणों में भी रूसी हो सकती है | सिबोरिया होने से त्वचा लाल हो जाती है और उनमें काफी जलन होने लग जाता है | डैंड्रफ के इलाज के लिए होम्योपैथी में कई तरह की दवाओं का इस्तेमाल किया जाता है | यदि आप में से कोई भी व्यक्ति डैंड्रफ की समस्या से पीड़ित है तो इलाज के लिए आप डॉ सोनल हीलिंग  विद होम्योपैथी से परामर्श कर सकते है | आइये जानते है डैंड्रफ होने के मुख्य लक्षण और कारण क्या है :- 

डैंड्रफ होने के मुख्य लक्षण 

डैंड्रफ होने के मुख्य लक्षण निम्नलिखित है :- 

 

  • सिर की त्वचा यानी स्कैल्प और बालों का सफ़ेद या फिर भूरे रंग की परत होना 
  • स्कैल्प पर बार-बार खुजली होना 
  • स्कैल्प में सूखापन होना 
  • बालों का लगातार झड़ना 
  • सिर की त्वचा से सफ़ेद रंग के पाउडर की तरह गिरना 
  • सिर की त्वचा में लाल और चिकने धब्बे का दिखाई देना 
  • स्कैल्प में तनाव होने का महसूस होना 
  • स्कैल्प, बालों, भौहों, दाढ़ी, मूछों पर या फिर अपने कंधों और पीठ की ऊपरी त्वचा में गुच्छों का दिखाई देना   आदि | 

 

डैंड्रफ होने के मुख्य कारण 

सिर में डैंड्रफ कई कारणों से उत्पन्न हो सकते है, जिनमें शामिल है :- 

 

यीस्ट मालासेजिया 

यह एक फंगस की तरह होता है, जो अधिकतर लोगों के सिर में ही होता है | यह सीबम पर ही पनपता है और फैटी एसिड से बनता है, जिससे स्कैल्प में लगातार खुजली होने लग जाती है |   

 

त्वचा की कोशिकाएं 

त्वचा हमारी पुरानी कोशिकाओं के बहाने का काम करती है, जब यह कोशिकाएं सिर और बालों से निकलने वाले तेल से जाकर मिलकर जम जाती है, तो इससे रूसी होने लग जाती है | 

 

शुष्क त्वचा का होना 

सुखी त्वचा होने के कारण भी रूसी होने की समस्या हो सकती है | 

 

अनियमित बालों की देखभाल करना 

बालों का गलत तरीकों से ख्याल रखने से जैसे की गलत दिनचर्या में बालों को धोना, ज्यादा या फिर कम मात्रा में शैम्पू का उपयोग करना और बालों को बार-बार न धोना, रूसी होने के मुख्य कारण बन सकते है |      

 

थायराइड की समस्या का होना 

थायराइड की समस्या होने से भी सिर की त्वचा काफी रूखी हो जाती है, जिससे रूसी हो सकती है | 

 

तनाव और मानसिक स्वास्थ्य का ख़राब होना 

अत्यधिक तनाव में रहने से और ख़राब मानसिक स्वास्थ्य भी रुसी होने का कारण बन सकते है | 

 

रूसी से छुटकारा पाने के लिए आप कटोकोनाज़ोल, सेलेनियम सल्फाइड या फिर जिंक युक्त शैम्पू का इस्तेमाल कर सकते है, पर ध्यान रहे किसी तरह के नुस्खे को अपनाने से पहले एक बार अपने डॉक्टर से ज़रूर परामर्श कर लें | आइये जानते है होम्योपैथी में डैंड्रफ का कैसे किया जाता है इलाज :- 

 

होम्योपैथी में कैसे किया जाता है डैंड्रफ का इलाज ? 

होम्योपैथी उपचार केवल एक ऐसा उपचार है, जो व्यक्ति को सामान्य रूप से ठीक कर देता है | आसान भाषा में बात करे तो होम्योपैथिक उपचार पूरे रोगी पर और उनकी विक्षिप्त स्थिति पर ध्यान अधिक केंद्रित करता है | होम्योपैथिक दवाओं को निर्धारित करने से पहले रोगी के स्थिति की अच्छे से जांच-पड़ताल की जाती है, इसके बाद ही स्थिति अनुसार होमियोपैथ डॉक्टर दवाओं को निर्धारित करता है, जिसमें रोगी के मेडिकल इस्तिहास, शरीरिक और मानसिक संरचना शामिल होते है | 

यदि आप में से कोई भी डैंड्रफ की समस्या से परेशान है और कई संस्थानों या फिर घरेलू उपचार करने के बाद भी आपकी स्थिति पर किसी भी तरह का सुधार नहीं आ रहा है तो डैंड्रफ होम्योपैथी इलाज के लिए आप डॉक्टर सोनल जैन से परामर्श कर सकते है | डॉ सोनल हीलिंग विद होम्योपैथी की सीनियर कंसल्टेंट डॉक्टर सोनल जैन मुंबई के बेहतरीन होमियोपैथ में से एक है, जो अपने मरीज़ों पिछले 18 सालों से होम्योपैथिक उपचार के ज़रिये सटीकता से इलाज कर रही है | इसलिए आज ही डॉ सोनल हीलिंग विद होम्योपैथी की ऑफिसियल वेबसाइट पर जाएं और इलाज के लिए अपनी अप्पोइन्मेंट को बुक करें | इसके अलावा आप वेबसाइट पर दिए गए नंबरों से संपर्क कर सीधा संस्था से बात कर सकते है |        

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Understanding Alopecia Areata: Causes, Symptoms and Homeopathic Remedies

The loss of hair in round or oval patches from the scalp or other areas, including the beard, eyebrows, etc., is known as alopecia areata. Typically, the size of bald patches is around a one- or five-rupee coin. Although it is uncommon, some people may also have complete hair loss. It can be extremely upsetting to have bald spots on one’s head, beard, and eyebrows.

About 1% of people have alopecia areata at any given moment, making it a reasonably common skin condition. Alopecia areata is reversible in contrast to other types of hair fall because the follicles—the structure that surrounds the hair root—are unharmed. Other than that, alopecia areata has no effect on a patient’s health. When hair begins to fall out, few individuals complain of itching. It doesn’t cause any bodily discomfort.

Uplifted, confident man with personal care and health in focus for homeopathy treatment.

Alopecia Areata: What is it?

Alopecia areata is the term for patchy hair loss. Alopecia areata often affects the scalp, although it can affect any portion of the body where hair grows. The term ‘Barbae’ is used when the alopecia areata affects the beard hair. Alopecia areata is one of the many autoimmune disorders that homoeopathy, a sophisticated science, treats. Homoeopathic treatments are effective in halting the appearance of bald areas and promoting hair growth. Since homoeopathic remedies for alopecia areata come from natural sources, there is little chance of adverse consequences.

 

Alopecia Areata Causes

An autoimmune condition is alopecia areata. This disorder causes bald patches as the body’s defence cells begin to damage hair follicles due to a misguided response. Alopecia areata is mostly influenced by genetics and heredity. People with alopecia areata frequently talk about a family member who has the same disorder.

 

Alopecia Areata Symptoms and Signs

Bald patches are a symptom of alopecia areata. This problem can affect any part of the body with hair; most frequently, the scalp and beard are affected by alopecia areata. One or more bald patches could be present. Typically, the patches are smooth to the touch and spherical in shape.

 

Homoeopathic Treatment for Alopecia Areata

Homeopathic is the best solution and a very effective treatment in dealing with alopecia areata. Homeopathic remedies help to treat hair falls and affect our bodies by optimizing our immune systems. Certain medications used in homoeopathy: Flouricum acid and phosphorus are often and very effectively treating this problem; take consultation while going to use any medication. Moreover, homoeopathy treatment highly reduces the chances of a problem occurring again.

Medicines used  in Homeopathic  treatment:

  1. For itching and burning of the scalp, —Arsenic Album is an effective treatment for alopecia areata. These symptoms irritate at night, and the scalp is also sensitive in some cases.
  2. Another useful homeopathic treatment for alopecia areata — Vinca minor, is a useful medicine to treat hair fall, especially when the inclination of hair falls in the spot, which is then replaced by white hair. Alongside itching and scratching are also present symptoms of alopecia areata.
  3. The medicine that is prominently used by young people to treat alopecia areata is Baryta carb; it is used to recover from bald patches on the scalp.  The other one is Lycopodium, which helps to recover from bald patches on temples, and Silicea is another homoeopathy treatment that is used by young people to treat hair fall, the treatment for alopecia areata occurring on the back of the scalp.
  4. An excellent homeopathic medicine to treat alopecia areata is Fluoric acid. It helps in regrowth of hair on bald patches. It is a very effective method for treating hair fall.
  5. Phosphorus is an excellent medicine used to treat alopecia areata.  Phosphorus works well for people who are suffering from bald patches. It is also wonderful for treating dandruff and itchiness. A person may crave cold drinks that have low phosphorus.

 

Lastly, if you also suffer from the problem of hair fall, you can go for homoeopathic treatment. Homeopathy treatment gives you a long-lasting treatment of hair loss. If you are looking for the best homoeopathic treatment, then Dr. Sonal’s Homoeopathy Clinic has years of experience in the homoeopathy field. Dr Sonal believes in providing the best solutions that enhance a person’s immunity and help patients free themselves from 80% of disease. Get the best consultation for hair treatment.

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Chicken pox treatment homeopathy

चिकन पॉक्स क्या होता है, इसके मुख्य लक्षण, कारण और कैसे करें इस समस्या का इलाज ?

क्या आपके के घर में या फिर आप में से कोई भी व्यक्ति शरीर में लाल धब्बे के कारण हो रही खुजली से परेशान है ? यदि हाँ है तो यह चिकन पॉक्स या फिर चेचक की समस्या हो सकती है | कई लोगों का यह मानना है कि चेचक की समस्या केवल बच्चों को ही प्रभावित करता है, लेकिन ऐसा बिलकुल भी नहीं है, चेचक छोटे बच्चों से लेकर वयस्कों तक किसी भी वर्ग के व्यक्ति को प्रभावित कर सकता है | आइये जानते है चिकन पॉक्स के बारे में विस्तार पूर्वक से :- 

 

चिकन पॉक्स क्या होता है ? 

 

चिकन पॉक्स को चेचक या फिर मेडिकल टर्म्स में इसे वैरिसेला-जोस्टर के नाम से जाना जाता है | यह एक प्रकार का संक्रमण होता है, जो खुजली वाले और छाले जैसे त्वचा के दाने के कारण उत्पन्न होता है | यह संक्रमण दो तरह की होते है, पहला छोटी माता यानी छोटी चेचक और दूसरी है बड़ी माता यानी बड़ी चेचक | इस संक्रमण से पीड़ित व्यक्ति को छाले-फोफले, खुजली के दाने और बुखार हो सकता है | यह चेहरे, पीठ और पेट पर सबसे पहले दिखाई देते है और यह धीरे-धीरे पूरे शरीर की त्वचा में फैलने लग जाते है |  यदि इस समस्या का सही समय पर इलाज न करवाया तो यह स्थिति को गंभीर कर सकता है | आइये जानते है चिकन पॉक्स के मुख्य लक्षण और कारण क्या है ? 

Fluid therapy consultation for allergy relief at Dr. Sonal Mehta Homeopathy.

चिकन पॉक्स के मुख्य लक्षण क्या है ? 

 

  • खुजली वाले दानों का उत्पन्न होना 
  • अत्यधिक उल्टी का होना 
  • बुखार के साथ सिरदर्द 
  • दानों का धीरे-धीरे पूरे शरीर में फैलना 
  • पूरे शरीर में दर्द होना 
  • गर्दन में अकड़न
  • खांसी और थकान 
  • गले में खराश की समस्या 
  • मांसपेशियों का ढीला पड़ना 
  • भूख की कमी होना 
  • मुंह में घाव होना 

 

चिकन पॉक्स के मुख्य कारण क्या है ?

 

चिकन पॉक्स वैरिसीले-जोस्टर के कारण उत्पन्न होता है | यह संक्रमण नाक और गले में रहता है, जो संक्रमित व्यक्ति के खांसने, छींकने या केवल बात करने फ़ैल सकता है | इसके मुख्य कारण है :- 

 

  • संक्रमित व्यक्ति के छालों, लार या फिर बलगम को सीधे छू लेना  | 
  • संक्रमित व्यक्ति के दूषित वस्तुओं के संपर्क में आना  |    
  • दाद से पीड़ित व्यक्ति के छालों के संपर्क में आना | 

चिकन पॉक्स से कैसे पाएं निदान ? 

 

चिकन पॉक्स से पीड़ित व्यक्ति को अक्सर बिस्तरे में पूरी तरह से आराम करने को और गुनगुने पानी से नहाने की सलाह दी जाती है, जिससे खुजली की समस्या से काफी हद तक राहत मिल जाती है | लेकिन आपको बता दे, ऐसे कुछ प्रभावी होमेओपेथिक उपचार मौजूद है, जो चिकन पॉक्स के इलाज के लिए बेहद कारगर सिद्ध है | चूँकि ऐसा माना जाता है की होमेओपेथिक उपचार से किसी भी तरह के संक्रमण बीमारों का इलाज बिना किसी दुष्प्रभावों के आसानी से किया जा सकता है | 

यदि आप में कोई भी व्यक्ति चिकन पॉक्स की समस्या से पीड़त है तो इलाज में डॉ सोनल हीलिंग विथ होमियोपैथी आपकी पूर्ण रूप से मदद कर सकता है | इस संस्था के सीनियर कंसलटेंट डॉक्टर सोनल जैन होमेओपेथिक में स्पेशलिस्ट है, जो पिछले 18 वर्षों से पीड़ित मरीज़ों का स्थायी रूप से इलाज कर रही है | इसलिए परामर्श के लिए आज ही डॉ सोनल हीलिंग विथ होमियोपैथी की ओफिसिअल वेबसाइट पर जाएं और अपनी नियुक्ति को बुक करें | आप चाहे तो वेबसाइट में मौजूद नंबरों से भी संपर्क कर सकते है | 

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Homeopathic Doctor homeopathic medicine

थायराइड क्या होता है, इसके लक्षण, कारण और होम्योपैथिक में कैसे किया जाता है इलाज ?

थायराइड हमारे शरीर के गले में मौजूद तितली की तरह एक ग्रंथि होती है, जो गले के आगे के हिस्से में स्थित होता है | यह  ग्रंथि शरीर में अलग-अलग तरह के हार्मोन का निर्माण करती है, जैसे की ट्राईआयोडोथायरोनिन T3 और थायरोक्सिन T4 आदि शामिल है, जो हमारे शरीर में मौजूद मेटाबॉलिज्म को नियंत्रित करने का कार्य करते है और कैल्सीटोनिन नामक हार्मोन हड्डियों में मिनरल्स को बनाये रखने का काम करती है | 

 

हमारे दिमाग में मौजूद एक ग्रंथि प्रतिक्रिया को भी थायराइड द्वारा निर्मित हार्मोन के ज़रिये नियंत्रित किया जाता है | इसके अलावा पिट्यूटरी ग्रंथि भी इन हार्मोन को नियंत्रित करने के लिए थायराइड स्टिमुलेटिंग हार्मोन ( टीएसएच ) का निर्माण करती है, जो रक्त में T3 और T4 हार्मोन की मात्रा को कम-ज़्यादा करने का कार्य करता है | जब हमारे रक्त में मौजूद T3 और T4 हार्मोन का स्तर काफी हद तक बढ़ जाता है, तब इस स्थिति को थायराइड के स्तर का बढ़ना कहा जाता है | इसके विपरीत जब रक्त में मौजूद T3 और T4 हार्मोन का स्तर कम हो जाता है, तो इससे भी थायराइड के स्तर कम हो जाता है, जिससे हाइपोथायरॉइडिज़्म भी कहा जाता है | 

Homeopathy thyroid treatment demonstration by Dr. Sonal Mehta at her clinic.

थायराइड कितने प्रकार के होते है ? 

पुरुषों की तुलना में महिलाएं सबसे अधिक थायराइड से प्रभावित होती है | थायराइड के स्तर बढ़ने और घटने के अलावा और भी ऐसे कई थायराइड से संबंधित समस्याएं होती है, जैसे की थायराइड में सिस्ट का बनना, ट्यूमर और थायराइड कैंसर आदि शामिल है | अब अगर थायराइड के प्रकार के बात करें तो यह दो प्रकार के होते है पहले है हाइपोथायरॉइडिज़्म और दूसरा है हाइपरथायरॉइडिज़्म |   

 

हाइपरथायरॉइडिज़्म तब उत्पन्न होता है, जब गले की ग्रंथि T4 यानी  थायरोक्सिन का निर्माण सबसे अधिक करने लग जाती है | जिसकी वजह से हमारे शरीर में थायराइड से संबंधित विकार तेज़ी से बढ़ने लग जाते है, जो शरीर के वजन को तेज़ी से घटाने और दिल की धड़कन को तेज़ी से बढ़ाने लग जाता है |      

         

हाइपोथायरॉइडिज़्म तब उत्पन्न होता है जब गले की ग्रंथि कुछ ज़रूरी हार्मोन का निर्माण करना बंद कर देती है | जब हमारे शरीर में बहुत कम ही मात्रा में हार्मोन मौजूद होते है तो हमारा शरीर बहुत थका हुआ महसूस करता है | इसके अलावा शरीर का वजन बहुत तेज़ी से बढ़ने लग जाता है और ठन्डे तपमान के लिए सहनशक्ति काफी कम हो जाती है |

 

थायराइड के मुख्य लक्षण क्या है ?      

थायराइड ग्रंथि शरीर के मेटाबॉलिज्म को नियंत्रित करने का कार्य करता है | थायराइड में असामान्यताएं के कई लक्षण दिखाई दे सकते है, जिनमें शामिल है :-   

 

हाइपरथायरॉइडिज़्म होने पर निम्नलिखित लक्षण दिखयी दे सकते है, 

  • वजन का तेज़ी से घटना 
  • गंजापन होना 
  • बार-बार पसीना आना 
  • चिड़चिड़ रहना 
  • गर्दन में सूजन होना 
  • गर्मी के संवेदनशील होना 
  • भूख लगना 
  • दिल के धड़कन का तेज़ी से बढ़ जाना 
  • अनियमित रूप से मासिक धर्म आदि 

 

हाइपोथायरॉइडिज़्म होने पर निम्नलिखित लक्षण दिखयी दे सकते है, 

  • तेज़ी से वजन का बढ़ना 
  • ठंडे तापमान के प्रति संवेदनशील होना 
  • बालों और त्वचा का शुष्क होना 
  • हर समय मांसपेशियों में दर्द और कमज़ोरी रहना 
  • हाथों का सुन्न और झुनझुनी होना 
  • अवसाद और चिंता की समस्या 
  • अधिक थकान का अनुभव करना 
  • मानसिक धुंधलापन स्थिति आदि 

थायराइड कैंसर होने पर निम्नलिखित लक्षण दिखाई दे सकते है,

  • गर्दन पर गांठ जैसे महसूस होना 
  • आवाज़ का बदलना 
  • खाना को निगलने में परेशानी होनी 
  • गार्ड की समस्या 

  

थायराइड के मुख्य कारण क्या है ?

शरीर में थायराइड से जुड़े विकार होने के कई कारण हो सकते है, जिनमें शामिल है :- 

 

  • किसी तरह के वायरल की चपेट में आने से, थायराइड से जुड़े विकार बढ़ सकते है | 
  • आयोडीन की कमी होना 
  • ऑटोइम्यून बीमारियों के कारण 
  • कुछ दवाओं के सेवन से 
  • अधिक समय तनाव में रहना 
  • बच्चे की डिलीवरी के बाद 
  • अनुवांशिक कारण से 

 

होम्योपैथिक में कैसे किया जाता है थायराइड का इलाज ? 

एलॉपथी डॉक्टर थायराइड के आम उपचार में पीड़ित व्यक्ति को कुछ सप्लीमेंट्स निर्धारित कर देते है, ताकि थायराइड के स्तर पर नज़र राखी जा सके, हालांकि यह समस्या का कोई स्थिर इलाज नहीं है | होम्योपैथी एकलौता ऐसा सुरक्षित उपचार है, जिसमें सही परिणाम मिलने के बाद मरीज़ हार्मोन के सप्लीमेंट्स को लेना छोड़ सकता है | 

 

होम्योपैथिक उपचार केवल बीमारी का ही नहीं उपचार करता, बल्कि यह उसके लक्षणों को पूरी तरह से कम करने और अन्य बीमारियों की संभावना को भी ठीक कर देता है | लक्षणों को दबाने के बजाय होम्योपैथिक उपचार इन लक्षणों को जड़ से ख़तम करने की कोशिश करता है | यह दवाएं प्रतिरक्षा प्रणाली की तरह काम करती है और उन एंटीबॉडी को ख़तम करने का काम करती है, जो थायराइड की ग्रंथि को नुक्सान पहुंचने का कार्य करती है | यदि आप में कोई भी व्यक्ति थायराइड से जुड़े विकार से पीड़ित है तो इलाज के लिए आप डॉक्टर सोनल जैन से मिल सकते है | 

डॉ सोनल हीलिंग विथ होम्योपैथी के सीनियर कंसल्टेंट डॉक्टर सोनल जैन होम्योपैथिक उपचार में स्पेशलिस्ट है, जो पिछले 18 वर्षों से होम्योपैथी उपचार के ज़रिये सटीकता से इलाज कर रही है | इसलिए आज ही डॉ सोनल हीलिंग विथ होम्योपैथी की ऑफिसियल वेबसाइट पर जाएं और अपनी अप्पोइन्मनेट को बुक करें | आप चाहे तो वेबसाइट पर दिए गए नंबरों से सीधा संपर्क कर सकते है |         

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Allergy Hindi

साइनोसाइटिस क्या होता है और जाने कैसे किया जाता है होम्योपैथिक उपचार से इस समस्या का इलाज ?

डॉ सोनल हीलिंग विथ होम्योपैथी की सीनियर कंसल्टेंट डॉक्टर सोनल जैन ने अपने यूट्यूब चैनल में पोस्ट एक यूट्यूब वीडियो में यह बताया की साइनोसाइटिस एक ऐसी समस्या होती है जिसमें आपके साइनस के ऊतकों में सूजन की समस्या उत्पन्न हो जाती है और साइनस के स्थान पर म्यूकस और कीटाणु भर जाते है | जिस वजह से साइनस टिशू सर्दी, एलर्जी से संक्रमित होकर सूज जाती है, जो साइनस के प्रवेश को बंद कर उस मार्ग पर म्यूकस को फंसा देती है | उस मार्ग में म्यूकस का जमा होने के कारण सिरदर्द और दबाव जैसे लक्षण दिखाई देने शुरू हो जाते है | 

 

आसान भाषा में बात करें तो साइनोसाइटिस एक ऐसी समस्या है, जिससे पीड़त व्यक्ति के गले और नाक में सूजन और इन्फेक्शन हो जाता है | हलाकि इलाज करने के बाद भी गले और नाक का इन्फेक्शन तब तक ठीक नहीं होता, जब तक यह साफ़ नहीं हो जाता | आइये जानते है साइनोसाइटिस के मुख्य लक्षण कौन-कौन से होते है :- 

 

  • नाक का बंद होना 
  • गले और नाक में जलन होना
  • चेहरे पर दबाव पड़ना और दर्द होना 
  • गंध के प्रति कम अनुभूति होना 

 

यदि बात करें कि साइनस क्या होता है तो यह आपके सिर में मौजूद चार युग्मित गुहाएँ होती है, जो संकीर्ण मार्ग को आपस में जोड़ती है | आमतौर पर साइनस का कार्य बलगम बनाना होता है, जो नाक के मार्ग से बाहर की तरफ निकलता है | इसके साथ ही जल निकासी नाक को साफ़ और कीटाणु जैसे रोगजनकों से मुक्त रखने में मदद भी करती है | 

 

डॉक्टर सोनल जैन ने यह भी बताया की साइनोसाइटिस से पीड़ित व्यक्ति कई बार इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए एलॉपथी दवाओं का सहारा ले लेते है, जो समस्या को कम करने के बजाये, इसे बढ़ावा देने का काम करती है | लेकिन घबराएं नहीं साइनोसाइटिस का होम्योपैथिक उपचार की मदद से आसानी से इलाज किया जा सकता है, क्योंकि होम्योपैथी दवाओं से शरीर पर किसी भी प्रकार का दुष्प्रभाव पड़ता और साथ ही यह समस्या को जड़ से ख़तम करने में मदद भी करते है | 

 

यदि आप ही साइनोसाइटिस की समस्या से पीड़ित हो तो इलाज के लिए आज ही डॉ सोनल हीलिंग विथ होम्योपैथी नामक वेबसाइट पर जाएं और अपनी अप्पोइन्मेंट को बुक करें | आप चाहे तो वेबसाइट में मौजूद नंबरों से भी संपर्क कर सकते है |

 

इससे जुड़ी अधिक जानकारी के लिए आप दिए गए लिंक पर क्लिक कर इस वीडियो को पूरा देखें | इसके आलावा आप डॉ सोनल हीलिंग विथ होम्योपैथी नामक यूट्यूब चैनल पर भी विजिट कर सकते है |