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बवासीर जैसी समस्या से निजात पाने के लिए होम्योपैथी है उत्तम, जानिए कैसे ?

भारत इकलौता ऐसा देश है, जहाँ मिर्च-मसालों का सेवन सबसे ज्यादा होता है, जिस वजह से यहाँ पाइल्स जैसी बीमारी का होना बहुत आम है | जिससे बवासीर, अर्श और हेमोर्रोइड्स की समस्या भी कहा जाता है | पाइल्स यानी बवासीर एक किस्म की गंभीर और तकलीफदेह रोग है, जिसके सबसे ज़्यादा मामले भारत में पाए जाते है | इस रोग से अधिकतर लोग पीड़ित है, खासकर महिलाएं जो शर्म और झिझक के कारण किसी को भी इस समस्या के बारे में नहीं बताती है और तकलीफ से जूझती रहती है | 

 

पाइल्स क्या है ?  

पाइल्स की वजह से गूदे की शिराओं में सूजन आ जाती है, जिसके चलते उस स्थान पर मस्से जैसे बन जाते है | आम भाषा में इस समस्या को बवासीर के मस्से भी कहते है | इस सूजन के कारण मल त्यागते दौरान काफी तकलीफ होती है साथ ही उसके बाद मस्से बने क्षेत्र में दर्द, जलन और खुजली होने लगती है | 

 

पाइल्स कितने प्रकार के होते है ?  

पाइल्स दो तरह के होते है इंटरनल और एक्सटर्नल | कई लोग इस समस्या को बादी या फिर खुनी बवासीर भी कहते है | बादी बवासीर में मस्से बने क्षेत्र में दर्द और बहुत जलन होता है, लेकिन खून नहीं निकलता | वही खुनी बवासीर में दर्द और जलन जैसी समस्या नहीं होती, लेकिन ब्लीडिंग होने लगती है | 

 

पाइल्स होने के मुख्य कारण क्या है ?  

  • कब्ज़ की समस्या का होना 
  • अनियमित दैनिक कार्य 
  • बार-बार दस्त या पेचिस की समस्या होना  
  • गर्भावस्था के दौरान 
  • विरासत अनुवांशिक
  • बहुत समय तक एक जगह में बैठे रहना 
  • मोटापे की वजह से 
  • बुढ़ापे के आने से 
  • ख़राब खानपान 
  • किसी बीमारी की वजह से 

 

पाइल्स होने के मुख्य लक्षण क्या है ?    

  • अनुस में मस्से का उत्पन्न होना 
  • मल त्यागते समय दर्द, जलन और खुजली होना 
  • बैठने समय अत्यधिक दर्द का अनुभव होना 
  • मलद्वार क्षेत्र में सूजन या फिर लाल हो जाती है 
  • मल त्यागते समय ब्लीडिंग होना 
  • पेशाब करने के लिए बार-बार जाना 
  • कोई पुराना रोग की वजह से कमर दर्द 
  • कमज़ोर महसूस होना 

 

होम्योपैथिक उपचार कैसे करें ?    

यह बात तो सभी को पता है की होम्योपैथिक दवाओं से किसी भी तरह का शरीर पर दुष्प्रभाव नहीं पड़ता है | भले ही इसकी प्रक्रिया बाकियों के मुकलबले काफी स्लो है लेकिन यह समस्या को जड़ से ख़तम कर देता है | इसलिए होम्योपैथिक उपचार से पाइल्स बिना किसी दर्द और दुष्प्रभाव से ठीक हो सकता है | अगर आप भी पाइल्स की बीमारी से जूझ रहे है और होम्योपैथिक उपचार करवाना चाहते है तो इसके लिए आप डॉ सोनल जैन हीलिंग विथ होम्योपैथी से संपर्क कर सकते है, इस संस्था की डॉक्टर सोनल जैन होम्योपैथी दवाओं में एक्सपर्ट है, जो इस पाइल्स जैसी समस्या को जड़ से ख़तम करने में आपकी मदद कर सकता है |  

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क्या होम्योपैथी उपचार से हो सकता है पीसीओडी की समस्या का इलाज ?

पीसीओडी एक ऐसी समस्या है जिसकी वजह से महिलाओं में हार्मोनल विकार के कारण अंडाशय काफी बड़ा हो जाता है और इसके बाहरी किनारों में सिस्ट बनने लग जाता है | यह एक किस्म की हार्मोनल असंतुलन स्थिति होती है जो महिला के गर्भ में अंडाशय को काफी प्रभावित करती है, जिसके परिणामस्वरूप छोटे-छोटे सिस्ट उत्पन्न हो जाते है | आइये जानते इस समस्या के बारे विस्तारपूवर्क से :- 

ड़ॉ सोनल हीलिंग विथ होमियोपैथी के सीनियर कंसलटेंट डॉक्टर सोनल जैन अपने यूट्यूब चैनल में पोस्ट एक वीडियो में यह बताया की पॉली सिस्टिक ओवेरियन डिजीज यानी पीसीओडी महिलाओं की प्रजनन आयो में सबसे आम एंडोक्रिनोपैथी है, जिसकी वजह से इन्सुलिन के प्रतिरोध और प्रतिपूरक हाईपरइंसुलिनमिया की समस्या उत्पन्न्न हो जाती है | जिससे महिलाओं के अंडाशय काफी प्रभावित हो जाते है और साथ ही इसके बाहर छोटे-छोटे सिस्ट बन जाते है | 

पीसीओडी के लक्षण कौन से है? 

इसके कुछ सामान्य लक्षण इस प्रकार है :-  

  • वजन का बढ़ना
  • अनियमित रूप से मासिक चक्र का होना
  • चेहरे पर बालो का उगना 
  • पुरुषों में गंजेपन की स्थिति होना 
  • मुँहासे का कभी ठीक न होना 
  • गर्दन के आसपास ख़राब हो जाना 
  • बांझपन की समस्या होना 
  • चेहरे के त्वचा के रंग का काला पड़ना या फिर किसी भी शरीर के अंग में काला धब्बा पड़ना 
  • कुछ महिलाओं में हार्मोनल परिवर्तन की वजह से सिरदर्द भी लगता है | 

पीसीओडी होने के मुख्य कारण क्या है? 

इसके मुख्य कारण है कुछ इस प्रकार है :-  

  • बांझपन हो जाना 
  • गर्भपात की समस्या या फिर समय से पहले शिशु का जनम होना 
  • नॉन-अल्कोहोलिक स्टिटोहेपेटीएस के कारण होने वाली गंभीर यकृत सूजन होना 
  • मेटाबोलिक सिंड्रोम से उच्च रक्तचाप, उच्च रक्त शर्करा जैसे की कोलेस्ट्रॉल का स्तर बढ़ना और हृदय से जुड़े समस्या को भी बढ़ावा देता है | 

डॉक्टर सोनल जैन ने यह भी बताया की पीसीओडी के उपचार के लिए होमेओपेथी एक ऐसा विकल्प है जिससे इस समस्या को जड़ से ख़तम किया जा सकता है | यह बात तो सभी को जानते है की होमियोपैथी उपचार से शरीर पर कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ता है | भले ही होमियोपैथी दवाओं की प्रक्रिया बहुत धीरे है लेकिन यह समस्या को जड़ से ख़तम करने में सक्षम भी है |   

इस वीडियो में पीसीओडी से पीड़ित महिला नाम नाती गेलकर ने बताया की कोविड जैसी महामरी के दौरान वह पीसीओडी समस्या का शिकार हो गयी थी | जिसकी वजह से वह अनियमित मासिक धर्म चक्र की समस्या से गुजर रही थी और उनका वजन भी बढ़ाने लग गया था | इसके इलाज के लिए उन्होंने अलोपथी दवाओं का सहारा भी लिया था परन्तु कोई असर नहीं हुआ | जब उन्हें डॉक्टर सोनल जैन के बारे में पता लगा तो उन्होंने बिना सोचे यहाँ से परीक्षण करवाने का निर्णय ले लिया | जिनके द्वारा बातये गए होमियोपैथी दवाओं के सेवन से यह समस्या कुछ ही दिनों में कम हो गयी और आज इस समस्या से उन्हें मुक्ति भी मिल गयी है | ड़ॉ सोनल हीलिंग विथ होमियोपैथी के सीनियर कंसलटेंट डॉक्टर सोनल जैन होमेओथी दवाओं में स्पेशलिस्ट जिससे आपको इस समस्या से प्रकृतिक रूप से छुटकारा पाने में मदद मिल सकती है |

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एलर्जी से प्रबंधन के लिए होम्योपैथी का चुनाव क्यों करें, जानें एक्सपर्ट्स क्या है उनकी सलाह

रायनाइटिस और हे फीवर की तरह और भी ऐसी कई मौसमी एलर्जी होती है जिससे लाखों की संख्या में लोग जुझ रहे है | हलाकि एलोपैथिक दवा के सेवन और घरेलु उपचार से भी यह समस्या दूर नहीं होती | ऐसे समय पर आप होम्योपैथिक उपचार का सहारा ले सकते है | होम्योपैथिक उपचार एक ऐसा उपचार से जिससे कोई शरीर पर दुष्प्रभाव नहीं पड़ता और समस्या भी दूर हो जाती है | 

 

डॉ सोनल जैन हीलिंग विथ होम्योपैथी के डॉक्टर सोनल जैन ने अपने यूट्यूब चैनल में पोस्ट यूट्यूब शॉर्ट्स के माध्यम से यह बताया कि दुनिया भर में लाखों लोग कई तरह के एलर्जी की समस्या से जूझ रहे है, जिससे कम करने के लिए लोग एलोपैथी दवाओं का सहारा लेते है, जो इस एलर्जी को कम करने के बजाये इससे बढ़ावा देते है | लेकिन होम्योपैथिक की दवाएं इन एलर्जी के लिए सबसे अच्छी दवा होती है, क्योंकि यह दवाएं सस्ती होती है और हर बार अपना कार्य करने में सक्षम भी होते     है |

 

उदाहरण के लिए अगर बात करें हे फीवर जैसे एलर्जी की, तो यह एलर्जी अलग-अलग मौसम में भिन्न-भिन्न तरह के पदार्थों से शुरू हो जाता है | यह एलर्जी तब उजागर होती है आपकी प्रतिरक्षा प्रणाली पराग जैसे हानिरहित पदार्थों को खतरनाक मानने लगती है और उससे रक्षा के लिए रसायन तत्व को छोड़ने लगती है | आइये जानते है इसके मुख्य लक्षण :- 

 

  • बार-बार छींक आना 
  • नाक का बहते रहना 
  • आंखे गीली रहना और खुजली होना
  • गले में खुजली होना 
  • कान में जमाव होना 
  • सिरदर्द होता 
  • लगातार खाँसना आदि 

 

ऐसे मौसमी एलर्जी के लिए कुछ होम्योपैथिक उपचार होते है, जो किसी योग्य होम्योपैथी से ही परामर्श किया जा सकता है | होम्योपैथी दवाओं  के अन्य लाभ यह है कि यह अत्यंत किफायती होने साथ साथ शरीर के लिए सुरक्षित, विश्वसनीय और वास्तविक भी होते है | यह बात तो सभी जानते है की होम्योपैथिक दवाओं का कोई दुष्प्रभाव नहीं होते | यह समस्या को तेज़ी से ठीक भी करता है और इससे रोकथाम के लिए संकेत भी करता है | 

 

यदि आप भी किसी एलर्जी से परेशान हो और इलाज करवाना चाहते हो तो आप डॉ सोनल जैन हीलिंग विथ होम्योपैथी से परामर्श कर सकते है,इस संस्था के डॉक्टर सोनल जैन होम्योपैथिक दवाओं में एक्सपर्ट है, जो आपके इस समस्या को कम करने में आपकी मदद कर सकते है |  

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तनाव से बचाव के कौन-से उपचार और आहार है मददगार ?

तनाव आधुनिक जीवन का एक सामान्य पहलू है, जो हर उम्र के लोगों को प्रभावित करते है। यह कई प्रकार की शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं को जन्म दे सकता है। हालाँकि, ऐसे कई उपचार और आहार है जो तनाव को कम करने और समग्र कल्याण को बढ़ावा देने में मदद कर सकते है। तो इस ब्लॉग में, हम कुछ प्रभावी तरीकों और घरेलु उपाय के बारे में पता लगाएंगे, जो आपको तनाव से दूर रख सकें ;

तनाव को कम करने के कौन-से उपाय है मददगार ?

नियमित व्यायाम :

व्यायाम एक तनाव निवारक तरीका है। यह एंडोर्फिन जारी करता है, जो शरीर के प्राकृतिक मूड को बेहतर बनाता है, और तनाव हार्मोन को कम करता है। दैनिक व्यायाम दिनचर्या को अपने जीवन में शामिल करना आवश्यक है। पैदल चलना, जॉगिंग या योग जैसी गतिविधियाँ बेहतरीन विकल्प है।

 

गहरी सांस लेना :

गहरी साँस लेने के व्यायाम करना आसान है और इसका अभ्यास कभी भी, कहीं भी किया जा सकता है। वे तंत्रिका तंत्र को शांत करने और तनाव कम करने में मदद करते है। अपनी नाक से गहरी सांस लें, कुछ सेकंड के लिए अपनी सांस रोकें और अपने मुंह से धीरे-धीरे सांस छोड़ें। और आराम के लिए इसे कई बार दोहराएं।

 

पर्याप्त नींद लें :

नियमित नींद का शेड्यूल बनाए रखना महत्वपूर्ण है। हर रात 7 से 9 घंटे की गुणवत्तापूर्ण नींद का लक्ष्य रखें। नींद की कमी तनाव के स्तर को बढ़ा सकती है और दैनिक चुनौतियों से निपटने की आपकी क्षमता को ख़राब कर सकती है।

 

ध्यान :

तनाव कम करने के लिए ध्यान एक शक्तिशाली अभ्यास है। इसमें अपने दिमाग को केंद्रित करना और अव्यवस्थित विचारों की धारा को खत्म करना शामिल है। नियमित ध्यान सत्र भावनात्मक कल्याण में सुधार और चिंता को कम करने में मदद करते है।

 

शराब और कैफीन सीमित करें :

शराब और अत्यधिक कैफीन का सेवन तनाव को बढ़ा सकता है। इन पदार्थों का सेवन कम करें, खासकर तनावपूर्ण अवधि के दौरान।

 

सामाजिक संबंध :

मित्रों और परिवार के साथ मजबूत सामाजिक संबंध बनाए रखें। अपने विचारों और भावनाओं को साझा करने से तनाव कम करने में मदद मिल सकती है और चुनौतीपूर्ण समय के दौरान एक सहायता प्रणाली प्रदान की जा सकती है।

 

समय प्रबंधन का ध्यान रखें :

प्रभावी समय प्रबंधन तनाव को बढ़ने से रोक सकता है। व्यवस्थित और नियंत्रण में रहने के लिए कार्यों की सूचियाँ बनाएं, प्राथमिकताएँ निर्धारित करें और कार्यों को प्रबंधनीय भागों में बाँट लें।

 

जर्नलिंग :

अपने विचारों और भावनाओं को लिखना तनाव को प्रबंधित करने का एक चिकित्सीय तरीका हो सकता है। यह आपको तनाव ट्रिगर करने वालों की पहचान करने और उनके माध्यम से अधिक प्रभावी ढंग से काम करने की अनुमति देता है।

 

अरोमाथेरेपी :

अरोमाथेरेपी में विश्राम को बढ़ावा देने के लिए आवश्यक तेलों का उपयोग शामिल है। लैवेंडर, कैमोमाइल और यूकेलिप्टस जैसी सुगंध आपके दिमाग को शांत करने और तनाव को कम करने में मदद कर सकती। तनाव से राहत पाने के लिए आपको मुंबई में होम्योपैथिक क्लिनिक से इस थेरेपी को जरूर करवाना चाहिए। 

 

प्रगतिशील मांसपेशी विश्राम :

इस तकनीक में विभिन्न मांसपेशी समूहों को तनाव देना और फिर आराम देना शामिल है। यह शारीरिक तनाव को दूर करने में मदद करता है, जो अक्सर तनाव से जुड़ा होता है।

 

स्क्रीन समय सीमित करें :

अत्यधिक स्क्रीन समय, विशेष रूप से सोने से पहले, नींद के पैटर्न में बाधा डाल सकता है और तनाव बढ़ा सकता है। इसलिए अपने स्क्रीन उपयोग पर सीमाएँ निर्धारित करें।

 

आभार अभ्यास :

अपने जीवन के सकारात्मक पहलुओं के लिए नियमित रूप से आभार व्यक्त करने से आपका ध्यान तनावों से हट सकता है और आपके समग्र दृष्टिकोण में सुधार हो सकता है।

 

तनाव को कम करने के लिए किस तरह के आहार का सेवन करें ! 

संतुलित आहार : 

एक संतुलित आहार तनाव प्रबंधन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। विभिन्न प्रकार के फल, सब्जियाँ, लीन प्रोटीन और साबुत अनाज का सेवन करें। अत्यधिक कैफीन और चीनी से बचें, जो तनाव बढ़ा सकते है।

 

हर्बल चाय का सेवन करें :

कुछ हर्बल चाय, जैसे कैमोमाइल और वेलेरियन रूट, अपने शांत गुणों के लिए जाने जाते है। हर्बल चाय का गर्म कप पीना सुखदायक हो सकता है और तनाव को कम कर सकते है।

 

हाइड्रेटेड रहें :

निर्जलीकरण आपके मूड को प्रभावित कर सकता है और तनाव बढ़ा सकता है। ठीक से हाइड्रेटेड रहने के लिए दिन भर में खूब पानी पीना सुनिश्चित करें।

 

फाइबर को आहार में शामिल करें :

  • फाइबर युक्त खाद्य पदार्थ पाचन और मल त्याग को सुविधाजनक बनाने के लिए उत्कृष्ट होते है, साथ ही एससीएफए के उत्पादन को उत्तेजित करके तनाव प्रबंधन में भी सहायता करते है। अगर आपको सोने में परेशानी हो रही है तो सोने से पहले गर्म दूध पीने से मदद मिल सकती है। यह नींद के लिए व्यापक रूप से उपयोग किए जाने वाले भारतीय घरेलू उपचारों में से एक है ।
  • लेकिन दूध लेने के बाद भी नींद की समस्या आपकी ठीक न हो तो इसके लिए आपको मुंबई में होम्योपैथिक डॉक्टर का चयन करना चाहिए। 

 

तनाव को ठीक करने के लिए बेहतरीन क्लिनिक !

अगर आप तनाव से निजात पाना चाहते है तो इसके लिए आपको डॉ. सोनल होम्योपैथिक क्लिनिक का चयन करना चाहिए क्युकी यहां पर तनाव का खात्मा बहुत ही बेहतरीन तरीके से किया जाता है और इसका उपचार होम्योपैथिक तरीके से किया जाएगा तो इस दवाई का भी आपको किसी भी तरह का कोई नुकसान नहीं देखने को मिलेगा।

 

निष्कर्ष :

अच्छे स्वास्थ्य और कल्याण को बनाए रखने के लिए तनाव का प्रबंधन महत्वपूर्ण है। इन उपचारों और आहार प्रथाओं को अपनी दैनिक दिनचर्या में शामिल करने से आपको तनाव से प्रभावी ढंग से निपटने में मदद मिल सकती है। याद रखें कि हर किसी के तनाव ट्रिगर और उससे निपटने के तरीके अलग-अलग होते है, इसलिए यह जानना महत्वपूर्ण है कि आपके लिए सबसे अच्छा क्या काम करता है। तनाव कम करने के लिए सक्रिय कदम उठाकर आप अधिक खुशहाल, स्वस्थ जीवन जी सकते है।

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पीसीओएस (PCOS) को ठीक करने के लिए घरेलू उपाय कैसे सहायक है ?

पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (पीसीओएस) महिलाओं में एक आम अंतःस्रावी विकार है, जो हार्मोनल असंतुलन की विशेषता है जो अनियमित मासिक धर्म, अत्यधिक बाल विकास और प्रजनन संबंधी समस्याओं जैसे विभिन्न लक्षणों को जन्म देता है। जबकि चिकित्सा हस्तक्षेप मौजूद है, कई व्यक्ति पीसीओएस लक्षणों को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने के लिए घरेलू उपचार भी तलाशते है, तो चलिए जानते है की इसको ठीक करने के लिए घरेलू उपाय के साथ होम्योपैथिक उपचार कैसे सहायक है ;

पीसीओएस में घरेलू उपचारों की क्या भूमिका है ?

घरेलू उपचारों को अक्सर चिकित्सा उपचारों का पूरक माना जाता है और लक्षणों को कम करने और समग्र कल्याण में सुधार करने की उनकी क्षमता के लिए उपयोग किया जाता है।

आहार संशोधन : 

प्राथमिक रणनीतियों में से एक आहार संबंधी आदतों में बदलाव करना है। संपूर्ण खाद्य पदार्थों को शामिल करने, परिष्कृत शर्करा और कार्बोहाइड्रेट को कम करने और फाइबर का सेवन बढ़ाने से रक्त शर्करा के स्तर को नियंत्रित करने में मदद मिल सकती है, जो पीसीओएस वाले लोगों के लिए एक महत्वपूर्ण चिंता का विषय है।

नियमित व्यायाम : 

पीसीओएस के लक्षणों को प्रबंधित करने के लिए नियमित शारीरिक गतिविधि में शामिल होना मौलिक है। व्यायाम वजन प्रबंधन में सहायता करता है, इंसुलिन संवेदनशीलता में सुधार करता है और हार्मोनल उतार-चढ़ाव को संतुलित करने में मदद करता है।

हर्बल सप्लीमेंट : 

कुछ व्यक्तियों को दालचीनी, पुदीना चाय और मेथी जैसे हर्बल सप्लीमेंट के माध्यम से राहत मिलती है। इन्हें संभावित रूप से मासिक धर्म चक्र को विनियमित करने और इंसुलिन प्रतिरोध को कम करने का सुझाव दिया गया है।

तनाव प्रबंधन : 

तनाव हार्मोनल असंतुलन को बढ़ा सकता है। योग, ध्यान और गहरी साँस लेने के व्यायाम जैसे अभ्यास तनाव के स्तर को प्रबंधित करने में मदद कर सकते है, जो पीसीओएस वाले व्यक्तियों के समग्र कल्याण में योगदान करते है।

पर्याप्त नींद : 

उचित नींद की स्वच्छता महत्वपूर्ण है। पर्याप्त आराम हार्मोन विनियमन और समग्र स्वास्थ्य का समर्थन करता है, पीसीओएस लक्षणों के प्रबंधन में सहायता करता है।

घरेलू उपचारों का असर :

घरेलू उपचार पीसीओएस के प्रबंधन के लिए एक समग्र दृष्टिकोण प्रदान करते है। हालांकि यह कोई निश्चित इलाज नहीं है, फिर भी ये अक्सर लक्षणों से राहत प्रदान करते है और समग्र स्वास्थ्य और कल्याण में सहायता करते है।

आहार परिवर्तन : 

संपूर्ण खाद्य पदार्थों, सब्जियों, दुबले प्रोटीन और स्वस्थ वसा पर ध्यान केंद्रित करने वाला आहार इंसुलिन के स्तर को नियंत्रित करने में मदद कर सकते है। कम चीनी और परिष्कृत कार्बोहाइड्रेट वजन प्रबंधन और मासिक धर्म चक्र को नियंत्रित करने में सहायता कर सकते है।

नियमित व्यायाम : 

एरोबिक गतिविधियों और शक्ति प्रशिक्षण जैसे व्यायाम न केवल वजन प्रबंधन में मदद करते है, बल्कि इंसुलिन संवेदनशीलता में भी सुधार करते है, जिससे पीसीओएस लक्षणों की गंभीरता कम हो जाती है।

हर्बल सप्लीमेंट्स : 

कुछ हर्बल सप्लीमेंट्स, हालांकि सार्वभौमिक रूप से समर्थित नहीं है, कुछ व्यक्तियों में आशाजनक दिखे है। उदाहरण के लिए, दालचीनी और मेथी इंसुलिन संवेदनशीलता में सुधार करने में मदद कर सकते है, और पुदीना चाय संभावित रूप से अतिरिक्त बालों के विकास को कम कर सकती है।

तनाव प्रबंधन : 

तनाव हार्मोनल असंतुलन को बढ़ाता है। ध्यान, योग या माइंडफुलनेस जैसी तकनीकें तनाव के स्तर को काफी कम कर सकती है और परिणामस्वरूप, पीसीओएस के लक्षणों को कम कर सकती है।

पर्याप्त नींद : 

गुणवत्तापूर्ण नींद हार्मोन विनियमन और समग्र स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव डालते है, जो पीसीओएस लक्षणों के प्रबंधन में योगदान करती है।

यदि आप होम्योपैथिक तरीके से अपना उपचार करवा रहें है, तो इसके लिए आपको उपरोक्त्त उपायों को अपनाने से पहले एक बार मुंबई में होम्योपैथिक डॉक्टर से जरूर सलाह लेनी चाहिए।

होम्योपैथिक तरीके से पीसीओएस का इलाज कैसे संभव है ?

  • मानव शरीर पूरी तरह से बीमारी से मुक्त होने के लिए प्रकृति से पूरी तरह सक्षम है। यह केवल तब होता है जब प्रतिरक्षा या अपने स्वयं के आंतरिक जीवनशक्ति निकल जाती है कि शरीर की रोग मुक्त रखने के लिए असमर्थ हो जाता है इसलिए होमियोपैथी उस जीवन शक्ति का संतुलन बहाल करने की कोशिश करता है जो एक बार जीवनशैली अपने मूल संतुलन को पुनः प्राप्त कर लेता है, यह बिना किसी बाहरी सहायता के स्वयं उपचार करके खुद स्वास्थ्य में सुधार ला सकते है।
  • होम्योपैथिक दवाएं हार्मोनल असंतुलन को सही करती है और इसके नकारात्मक प्रभावों की बेअसर करती है।
  • यूएसजी श्रोणि की दोहराकर, उपचार शुरू करने के 3 से 6 महीने के बाद, अगले चरण में अल्सर को धीरे-धीरे भंग किया जा सकता है।
  • माहवारी चक्र नियमित हो जाता है। चेहरे पर मुँहासे और बाल वृद्धि सहित अन्य शिकायतों को भी ध्यान में रखा जाता है।
  • भविष्य में महिलाओं की गर्भधारण करने के लिए प्रजनन क्षम होने की संभावना की खीलता भी उपस्थित है।    

पीसीओएस का इलाज होम्योपैथिक तरीके से करवाने के लिए आपको मुंबई में होम्योपैथिक क्लिनिक का चयन करना चाहिए।

सुझाव :

आयुर्वेद से लेकर होम्योपैथिक तक हर बीमारी और समस्या का इलाज काफी अच्छे से मिल जाता है। वहीं अगर आप होम्योपैथिक तरीके से पीसीओएस का इलाज करवाना चाहती है, तो इसके लिए आपको डॉ. सोनल होम्योपैथिक क्लिनिक का चयन करना चाहिए।

निष्कर्ष :

घरेलू उपचार पीसीओएस लक्षणों के प्रबंधन में संभावित लाभ प्रदान करते है, यह स्वीकार करना महत्वपूर्ण है कि व्यक्तिगत प्रतिक्रियाएं भिन्न हो सकती है। इन उपचारों का उपयोग अक्सर चिकित्सा उपचार और जीवनशैली में संशोधन के साथ किया जाता है। पीसीओएस के प्रबंधन के लिए व्यक्तिगत और व्यापक दृष्टिकोण सुनिश्चित करने के लिए स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं के साथ परामर्श आवश्यक है। इन घरेलू उपचारों को पेशेवर चिकित्सा मार्गदर्शन के साथ एकीकृत करके, व्यक्ति लक्षणों को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने और अपने जीवन की समग्र गुणवत्ता में सुधार करने की दिशा में सक्रिय कदम उठा सकते है। और इस कदम में होम्योपैथिक उपचार भी कारगर साबित होते है।

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होम्योपैथिक क्या है और इसका इलाज कैसे लोगों के लिए है वरदान !

आज का लेख हमने खास उन लोगों के लिए तैयार किया है, जो होम्योपैथिक दवाइयों का सेवन कर रहें। क्युकि बहुत से ऐसे लोग भी होंगे जिन्हें ये पता ही नहीं की होम्योपैथिक दवाई बनती कैसे है इसका फायदा कितनी देर में होगा और इसका सेवन कैसे करना है। 

तो वही कुछ को इसके बारे में सामान्य जानकारी होती है जिसके कारण वो इस दवाई का सेवन करने लगते है और ऐसे वो इसलिए करते है क्युकि इस दवाई का कोई नुकसान नहीं है इसलिए, तो वही आज हम शुरू से लेकर आखिर तक बताएंगे की आखिर है क्या होम्योपैथिक;

होम्योपैथिक क्या है ?

  • अनेक वैज्ञानिक प्रमाणिक्ता के बावजूद भारत सहित अनेक विकासशील देशों मे होमियोपैथी सबसे सस्ते उपचार का महत्वपूर्ण अंग बना हुआ है। 
  • भारत में तो त्वचा रोग, बच्चों के रोग , मानसिक स्वास्थ्य और अन्य रोगों में होमियोपैथिक दवाइया काफी फायदेमंद है। 
  • होम्योपैथिक चिकित्सा के अनुसार शरीर की बीमारी को ठीक करने की क्षमता होती है। 
  • होम्योपैथिक दवाई का असर बेशक धीमा है पर जब ये अपना असर दिखाना शुरू करती है तो ये व्यक्ति की बीमारी का खात्मा जड़ से कर देता है। 

होम्योपैथिक के बिल्कुल शुरुआती दौर के बारे में जानने के लिए आप मुंबई में होम्योपैथिक डॉक्टर का भी चयन कर सकते है।

होम्योपैथिक दवा कैसे बनती है ?

  • होम्योपैथिक दवाई पौधों, जानवरों और खनिजों जैसे विभिन्न स्रोतों से बनाई जाती हैं। वही ये दवाई बनाने के लिए अंतरराष्ट्रीय फार्माकोपिया में निर्धारित दिशानिर्देशों को ध्यान में रखा जाता हैं। दूसरी तरफ होम्योपैथिक दवाएं सुरक्षित और गंभीर प्रतिकूल प्रतिक्रियाओं से मुक्त मानी जाती हैं।
  • इसके अलावा इस दवाई को बनाने के लिए और किन-किन बातो का ध्यान रखा जाता है और इसको कैसे बनाया जाता है के बारे में जानने के लिए आप मुंबई में होम्योपैथिक क्लिनिक के अंदर जाकर देख सकते है।

होम्योपैथिक में कौन-सी बीमारी के इलाज शामिल है ?

  • एलर्जी का इलाज। 
  • डेंगू बुखार का इलाज। 
  • गुर्दे की पथरी। 
  • साइनसाइटिस। 
  • हीमोफीलिया। 
  • दस्त और मुंह के छाले का इलाज। 
  • मधुमेह की बीमारी का इलाज।

होम्योपैथिक दवाई को कैसे लेना चाहिए ?

  • इसकी दवाई को हाथ से न छुए बल्कि डिब्बी के ढकन में डालकर सीधा मुँह में डाले। 
  • फिर इसे निगलने व चबाने की बजाय चूसकर ही खाएं क्योंकि दवा का असर जीभ के जरिये होता है। दवा खाने के 5-10 मिनट बाद तक कुछ न खाएं। वही होम्‍योपैथी दवाओं का असर इस बात पर निर्भर करता है कि मरीज का रोग एक्यूट है या क्रॉनिक। ऐसा इसलिए क्युकि एक्यूट रोगों में यह 5 से 30 मिनट और क्रॉनिक बीमारियों में यह 5 से 7 दिन में असर दिखाना शुरू करती है।

होम्योपैथिक दवाई लेते वक़्त क्या परहेज करें ?

  • होम्योपैथिक दवा लेने से आधे घंटे पहले और दवा लेने के आधे घंटे बाद तक कुछ भी नहीं खाना चाहिए। और जब दवा ले तो मुंह को अच्छी तरह साफ करके दवा सीधे मुंह में डाले। वही ट्रीटमेंट के दौरान ज्यादा गंध वाले फूड्स (जैसे हींग) से परहेज करें।

सुझाव :

यदि आप भी अपनी बीमारी का जड़ से खात्मा करना चाहते है, तो इसके लिए आप डॉ सोनल्स होम्योपैथिक क्लिनिक से होम्योपैथिक दवाई की शुरुआत जरूर से करें।

निष्कर्ष :

क्या है होम्योपैथिक दवाई और ये कैसे असर दिखाती है इसके बारे में हम उपरोक्त बता चुके है तो अगर आप होम्योपैथिक से अपना इलाज करवाने के बारे में सोच रहे है तो इसके लिए उपरोक्त बातो का जरूर ध्यान रखें।

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पित्त दोष से बचाव के लक्षण, आहार और घरेलु उपचार क्या है ?

पित्त दोष, आयुर्वेद में तीन मूलभूत ऊर्जाओं में से एक, अग्नि और जल तत्वों से जुड़ा है। संतुलन में होने पर, पित्त पाचन, बुद्धि और ऊर्जा को बढ़ावा देता है। हालाँकि, पित्त की अधिकता विभिन्न शारीरिक और भावनात्मक लक्षणों को जन्म दे सकती है। यहां, हम पित्त दोष असंतुलन को रोकने और प्रबंधित करने के लिए लक्षण, आहार और घरेलू उपचार पर चर्चा करेंगे ;

पित्त असंतुलन के लक्षण क्या है ?

  • ऊंचे पित्त वाले व्यक्तियों को हाइपरएसिडिटी, अपच और सीने में जलन का अनुभव हो सकता है।
  • पित्त असंतुलन त्वचा पर चकत्ते, मुँहासे या सूजन के रूप में प्रकट हो सकता है।
  • पित्त बढ़ने से चिड़चिड़ापन, गुस्सा और निराशा हो सकती है।
  • पित्त व्यक्तियों को गर्म मौसम को सहन करना चुनौतीपूर्ण लग सकता है।
  • अत्यधिक पसीना आना, विशेषकर हथेलियों और तलवों में।
  • पित्त प्रभुत्व के कारण आंखें लाल, खुजली या जलन हो सकती है।

पित्त दोष क्या है ?

  • पित्त वह ऊर्जा है जो चयापचय और मानसिक और संवेदी स्तरों पर विचारों के प्रसंस्करण और धारणा सहित विभिन्न परिवर्तनों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। तो, हम कह सकते है कि यह पाचन में सहायता करता है और हमें गलत और सही के बीच अंतर करने में मदद करता है। और हमे क्या खाना चाहिए और क्या नहीं खाना चाहिए इसके बारे में भी जानकारी देते है।
  • हालाँकि, पित्त दोष का स्तर बढ़ने पर शरीर में असामान्य परिवर्तन देखने को मिल सकते है। 
  • पित्त दोष के इलाज के लिए आपको मुंबई में होम्योपैथिक क्लिनिक का चयन करना चाहिए।

पित्त को संतुलित करने के लिए किस तरह के आहार का सेवन करें ?

ठंडे खाद्य पदार्थ : 

खीरा, तरबूज, नारियल और पत्तेदार साग जैसे ठंडे खाद्य पदार्थों पर खाने पर जोर दें।

कड़वे और कसैले स्वाद : 

कड़वे और कसैले स्वाद वाले खाद्य पदार्थों को प्राथमिकता दें, जैसे करेला, हल्दी और हरी पत्तेदार सब्जियाँ।

मसालेदार भोजन से बचें : 

मसालेदार भोजन कम करें या खत्म कर दें, क्योंकि वे पित्त को बढ़ा सकते है।

खट्टे और नमकीन खाद्य पदार्थों का सेवन सीमित करें : 

अचार और अत्यधिक नमक जैसे खट्टे और नमकीन खाद्य पदार्थों का सेवन कम करें।

मीठे और ठंडे मसाले : 

मिर्च जैसे गर्म मसालों के बजाय इलायची और सौंफ़ जैसे मीठे और ठंडे मसालों का चयन करें।

पित्त को संतुलित करने के घरेलू उपाय कौन-से है ?

  • त्वचा की जलन को शांत करने और सूजन को कम करने के लिए एलोवेरा जेल लगाएं।
  • चेहरे पर गुलाब जल छिड़कने से त्वचा को ठंडक और ताजगी मिलती है।
  • नारियल तेल से सिर की मालिश करने से दिमाग शांत होता है और अतिरिक्त गर्मी कम हो जाती है।
  • पाचन तंत्र को ठंडा करने और सीने की जलन को कम करने के लिए पुदीने की चाय की चुस्की लें।
  • शरीर और दिमाग को ठंडा करने के लिए इस योग श्वास तकनीक का अभ्यास करें।
  • नियमित ध्यान पित्त से जुड़े तनाव और भावनात्मक असंतुलन को कम करने में मदद करता है, इसलिए रोजाना ध्यान करें।

पित्त दोष को ठीक करने में जीवनशैली कैसे भूमिका निभाते है ? 

  • पित्त व्यक्तियों को अधिक गर्मी से बचने के लिए अत्यधिक व्यायाम और अधिक परिश्रम से बचना चाहिए।
  • शरीर के तापमान को बनाए रखने और पाचन में सहायता के लिए पूरे दिन खूब पानी पिएं।
  • संतुलन बनाए रखने और तनाव कम करने के लिए दैनिक दिनचर्या स्थापित करें।
  • ऐसी गतिविधियों में व्यस्त रहें जो मानसिक शांति और विश्राम को बढ़ावा दें, जैसे पढ़ना, सुखदायक संगीत सुनना, या प्रकृति में समय बिताना।

पित्त दोष को ठीक करने के लिए आपको मुंबई में होम्योपैथिक डॉक्टर से सलाह जरूर लेना चाहिए।

पित्त दोष के इलाज के लिए बेस्ट होम्योपैथिक क्लिनिक !

अगर आप घरेलु उपायों और आहारों को अपनाने के बाद भी खुद में किसी भी तरह के बदलाव को नहीं देख पा रहें है, तो इसके इलाज के लिए आपको डॉ. सोनल होम्योपैथिक क्लिनिक का चयन करना चाहिए।

निष्कर्ष :

इन युक्तियों का पालन करके और ठंडे खाद्य पदार्थों और उपचारों को शामिल करके, आप पित्त असंतुलन को रोक सकते है और प्रबंधित कर सकते है, जिससे समग्र स्वास्थ्य और कल्याण में सुधार हो सकता है। वहीं इसके इलाज के लिए अगर आप होम्योपैथिक तरीको का प्रयोग करते है तो आपको किसी भी तरह के नुकसान का सामना नहीं करना पढ़ेगा।

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बदलते मौसम की एलर्जिक राइनाइटिस या हे फीवर का होम्योपैथिक उपचार क्या है ?

एलर्जिक राईनिटिस या हे फीवर एक साधारण बीमारी है, जिस में छींक का आना, आँखों से पानी का आना और नाक बहना जैसे लक्षण दिखाई देते है। एलर्जिक राईनिटिस का होम्योपैथिक उपचार इसे स्थाई रूप से ठीक करने में सक्षम माना जाता है। इस से पहले कि हम एलर्जिक राईनिटिस के होम्योपैथिक उपचार की बात करें, तो इससे पहले ये जान लेते है की होम्योपैथिक में इसका किस तरीके से इलाज किया जाता है ;

क्या है हे फीवर या एलर्जिक राइनाइटिस ?

  • एलर्जिक राईनिटिस या हे फीवर एक एलर्जिक बीमारी है जिस में नाक के अंदर की श्लेष्मा झिल्ली में सूजन आ जाती है। और यह सूजन तब होती है जब कोई एलर्जी करने वाली चीज़ सम्पर्क में आती है। ये चीज़ें धुआँ, मिट्टी के कण या फूलों के कण या कोई तेज़ गंध के सम्पर्क में आने की वजह से होता है। 
  • वहीं यह समस्या पतझड़ और वसंत ऋतु में अधिक होती है।
  • हे फीवर की समस्या एक हानिरहित बाहरी या इनडोर पदार्थ के लिए एलर्जी की प्रतिक्रिया के कारण होता है, जिसे शरीर गलती से कुछ हानिकारक (एलर्जेन) समझ लेता है।

हे फीवर या एलर्जिक राइनाइटिस के कारण क्या है ?

  • जेनेटिक कारण इसमें सबसे पहले शामिल है। 
  • अन्य एलर्जी या अस्थमा के कारण भी इस तरह की समस्या हो सकती है। 
  • दूसरे हाथ में सिगरेट धुए के कारण भी इस तरह की समस्या हो सकती है।

हे फीवर या एलर्जिक राइनाइटिस के दौरान लक्षण किस तरह के नज़र आते है ?

  • नाक, मुंह, आंख या गले में खुजली की समस्या। 
  • बहती नाक या नाक के बाद जल की निकासी का होना। 
  • रुकावट या जमाव के कारण भरी हुई नाक। 
  • तेज़ सुगंध और धुंआ, जैसे परफ्यूम या हेयर स्प्रे का आँखों पर गलत प्रभाव पड़ना। 
  • सूजी हुई पलकें। 
  • खांसीलाल और पानी वाली आँखें। 
  • सिगरेट का धुंआ। 
  • छींक का आना। 
  • सफाई उत्पाद, पूल क्लोरीन, वाहन उत्सर्जन और अन्य वायु प्रदूषक इसके लक्षणों में शामिल है। 

हे फीवर की समस्या होने पर कब करें डॉक्टर का चयन ?

  • आपके लक्षण अगर बहुत ज्यादा बढ़ जाए और एक सप्ताह से अधिक समय तक रहें।
  • आप ओवर-द-काउंटर एलर्जी दवाओं से ठीक नहीं हो रहे है, तब डॉक्टर का चयन करें।
  • आपकी एक और स्थिति है, जैसे अस्थमा, जोकि हे फीवर के लक्षणों को और बिगाड़ता है।
  • आपके संकेत और लक्षण गंभीर है।
  • आपकी एलर्जी की दवाएं अप्रिय दुष्प्रभाव पैदा कर रही है।
  • आप यह जानना चाहते है कि एलर्जी इंजेक्शन या इम्यूनोथेरेपी आपके लिए एक अच्छा विकल्प है या नहीं।

हे फीवर या एलर्जिक राइनाइटिस की कौन-से होम्योपैथिक उपचार है सहायक ?

  • होम्योपैथिक दवाएं एलर्जिक राईनाइटिस के लिए बहुत ही उपयुक्त मानी जाती है। इस की वजह यह है कि होम्योपैथिक दवाएं केवल लक्षणों को दबाने का प्रयास नहीं करती, बल्कि ये दवाएं शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमताओं को भी बढ़ाती है। 
  • जैसे  कि सब एलर्जी की बीमारियां शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता की कमज़ोरी की वजह से ही होती है। किसी एलर्जी करने वाली चीज़ के सम्पर्क में आते ही यह अत्यधिक मात्रा में प्रतिक्रिया करती है और इस वजह से सभी लक्षण महसूस होते है।
  • होम्योपैथिक दवाएं इस अत्यधिक प्रतिक्रिया को ठीक कर देती है और लक्षण भी धीरे-धीरे हर प्रकार से ठीक हो जाते है। उन्हीं चीज़ों से जिन से एलर्जी होती थी अब शरीर उन चीज़ें के विरूद्ध किसी भी प्रकार से कोई प्रतिक्रिया नहीं दिखाता।
  • अगर आप हे फीवर समस्या का खात्मा करना चाहते है, तो इसके लिए आपको मुंबई में होम्योपैथिक क्लिनिक का चयन करना चाहिए। और अपने उपचार को होम्योपैथिक तरीके से करवाना चाहिए।

हे फीवर या एलर्जिक राइनाइटिस समस्या के लिए कौन-सी होम्योपैथिक दवा है बेहतरीन ?

  • एलर्जिक राइनाइटिस से बचाव के लिए कुछ होमियोपैथिक दवाइयां है, जिसका सेवन करके आप इस तरह की समस्या से खुद का बचाव आसानी से कर सकते है, तो बात करें होम्योपैथिक दवाई की तो इसमें आपको – एलीयम सीपा, जोकि आँखों में पानी के साथ एलर्जिक राईनाइटिस के लिए सर्वोत्तम होम्योपैथिक दवा मानी जाती है। को डॉक्टरों के द्वता दिया जाता है। 
  • आर्सेनिक ऐल्बम, बढ़ी हुई प्यास के साथ एलर्जिक राईनाइटिस के लिए सर्वोत्तम होम्योपैथिक दवा के रूप में मानी जाती है। 
  • नेट्रम म्यूर, छींकों के साथ एलर्जिक राईनाइटिस के लिए सर्वोत्तम होम्योपैथिक दवा है। 
  • मर्क सॉल, गर्मी और ठंड के प्रति संवेदनशीलता के साथ एलर्जिक राईनाइटिस के लिए सर्वोत्तम होम्योपैथिक दवा के रूप में लोगों के द्वारा प्रयोग में लाई जाती है 
  • अरुण्डो, खुजली के साथ एलर्जिक राईनाइटिस के लिए सर्वोत्तम होम्योपैथिक दवा मानी जाती है।

उपरोक्त में से किसी भी तरह की दवाई का सेवन करने से पहले कृपया इस दवाई को किस तरह से लेना चाहिए, इसके बारे में जानने के लिए आपको मुंबई में होम्योपैथिक डॉक्टर का चयन करना चाहिए।

सुझाव :

हे फीवर की समस्या को हल्के में लेने की भूल कृपया न करें वरना ये हल्की सी बीमारी आगे चल के आपके लिए काफी बड़ी समस्या खड़ी कर सकती है, वहीं इस तरह की समस्या से बचाव के लिए आपको डॉ. सोनल होम्योपैथिक क्लिनिक का चयन करना चाहिए। 

हे फीवर या एलर्जिक राइनाइटिस के दौरान क्या करें और क्या न करें ?

क्या करें :

  • पराग या फफूंदी को अपने घर में आने से रोकने के लिए रात में खिड़कियां बंद रखें।
  • यात्रा के दौरान कार के शीशे बंद रखें।
  • अपने डॉक्टर के द्वारा बताई गई निर्धारित दवाइयां लें। 
  • नियमित रूप से वैक्यूम करें और नरम कपड़े से झाड़ें।
  • जितना भी संभव हो घर के अंदर ही रहें। 

क्या न करें :

  • ज्यादा समय बाहर न बिताएं।
  • धुंए से दुरी बनाकर रखें।
  • कपड़ों को बाहर ना सुखाएं क्योंकि वे परागकणों को पकड़ सकते है।
  • यदि आपको हे फीवर का संदेह है तो स्वयं दवा लें। 
  • अत्यधिक शराब पीने से बचें।

निष्कर्ष :

हे फीवर की समस्या एक तरह का वायरस है और इससे बचाव के लिए आपको जितनी जल्दी हो सकें इसके लक्षणों के बारे में जानकारी हासिल करना चाहिए और जल्द से जल्द डॉक्टर के सम्पर्क में आना चाहिए। और किसी भी तरह के उपाय या दवाई का सेवन करने से पहले एक बार डॉक्टर से जरूर सलाह लें।